RAKHI Saroj

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लेखनी प्रतियोगिता -18-Nov-2022

 आशिर्वाद


आशिर्वाद की बन वो मूर्त माथा चूम
 मेरे बालों में हाथ फिरा मुस्कुराते लवों से
 पूरा जहां मेरे लिए मांगती वो मेरी मां, 
जाने आज कहां गुम हो चली है।
जिसकी एक खुशी भरी खिलखिलाहट
आज बजती हजारों तालियों से
ज्यादा उत्साह मेरे दिल को दें जाती थी
कहां गई वो मुझसे आंचल छुड़ा मेरी मां।
जिसका एक आशिर्वाद मेरे दिल में बसे 
डर को दूर कर मेरे रूकें कदमों को
भागने की ताज़गी दें जाता था,
मेरी प्यारी मां का वह उठता आशिर्वाद
भरा हाथ जाने कौन छिन मुझसे ले गया।
कोई खोज लाओ मेरी मां को आखिर कैसे
खुदा किसी बच्चे का छिन कवच मुस्कुरा
अपनी मां के पांव को छू मांगता होगा आशिर्वाद।
  ‌‌‌‌‌‌राखी सरोज
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10 Comments

Abhinav ji

19-Nov-2022 08:58 AM

Very nice👍

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RAKHI Saroj

22-Nov-2022 12:29 AM

धन्यवाद आपका

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Muskan khan

18-Nov-2022 04:36 PM

Well done ✅

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RAKHI Saroj

22-Nov-2022 12:29 AM

धन्यवाद आपका

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अदिति झा

18-Nov-2022 12:34 PM

Nice 👍🏼

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RAKHI Saroj

22-Nov-2022 12:30 AM

धन्यवाद आपका

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